भारत और मालदीव के उभरते संबंध – रक्षा, व्यापार, कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य, क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से कैसे मजबूत हो रहे हैं और इसका दोनों देशों के आर्थिक स्थिति ,रक्षा, राजनीति, व्यापार , वर्तमान और भविष्य पर क्या असर पड़ेगा आईए जानते हैं।

परिचय
भारत-मालदीव संबंध आज दक्षिण एशिया की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारी है। भारत और मालदीव दोनों हिंद महासागर के प्रमुख खिलाड़ी ही नहीं यहां राज भी करते हैं। दोनों देश पडोसी होने के साथ, एक दूसरे के रणनीतिक साझेदार भी हैं। चाहे बात सुरक्षा की हो या आर्थिक या जलवायु परिवर्तन की, दोनों ने मिलकर काम किया है। – दोनों देशों का संबंध हर साल और अच्छा हो रहा है।
आइये भारत और मालदीव के इतिहास, वर्तमान संबंध और भविष्य में क्या चुनौतियाँ या अवसर हो सकते हैं विस्तार से जानते हैं
भारत-मालदीव संबंध का इतिहास
मालदीव को 1965 में आजादी मिली, आजादी के बाद उसका पहला राजनीतिक साझेदार भारत बना। तब से लेकर आज तक भारत ने मालदीव को हर तरह से समर्थन दिया है, चाहे वह राजनीतिक हो,आर्थिक मदद हो या रक्षा में सहयोग भारत ने उसका हर हर हालत में साथ दिया है।
1998 में मालदीव में जब तख्तापलट होने वाला था। भारत ने 1998 ऑपरेशन कैक्टस के माध्यम से सैन्य तख्तापलट को विफल किया था। ये एक राजनीतिक और निर्णायक मोड़ था जहां मालदीव को समझ आया कि भारत उसका असली शुभचिंतक है।
भारत के लिए मालदीव का strategic महत्व
मालदीव का स्थान बहुत ही रणनीतिक है यह भारत के लिए बहुत अच्छा है। यह देश हिंद महासागर के बीच में स्थित है, जहाँ से विश्व व्यापार के प्रमुख समुद्री मार्ग गुजरते हैं जहां से विश्व व्यापार होता है। इस कारण मालदीव भारत के लिए बहुत महत्व रखता है।
मालदीव भारत के लिए महत्वपूर्ण है:
- समुद्री सुरक्षा के लिए
- हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए
- आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए
- क्षेत्रीय संपर्क और ऊर्जा सहयोग के लिए
आर्थिक एवं विकास में सहयोग
भारत मालदीव का एक भरोसेमंद विकास साझेदार है। भारत ने कई प्रमुख परियोजनाओं को मालदीव में विकसित किया है जैसे:
ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) – यह मालदीव की सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना है, जिससे मालदीव को बहुत फायदा हुआ है, जिसे भारत से 500 मिलियन डॉलर के पैकेज के साथ बनाया जा रहा है।
स्वास्थ्य सेवा और कोविड सहायता – भारत ने महामारी के दौरान मालदीव को टीके, ऑक्सीजन संयंत्र और दवाइयाँ प्रदान कीं, जिससे मालदीव को बहुत सहायता हुई है।
व्यापार और निवेश – भारत मालदीव के शीर्ष 5 व्यापारिक साझेदारों में से एक है। भारतीय कंपनियाँ मालदीव में निर्माण, स्वास्थ्य सेवा और पर्यटन क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग
भारत और मालदीव के रक्षा संबंध हर साल मजबूत होते जा रहे हैं। कुछ प्रमुख रक्षा सहयोग बिंदु:
संयुक्त सैन्य अभ्यास – दोनों देशों के सैनिक मिलकर आतंकवाद विरोधी बहुत सारे अभ्यास करते हैं।
भारत ने मालदीव को समुद्री सुरक्षा के लिए गश्ती जहाज, तटीय रडार सिस्टम और हेलीकॉप्टर भी उपलब्ध कराए हैं।
मालदीव के नौसैनिकों और तट रक्षक अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण दिया जाता है।
ये सब पहल हिंद महासागर को सुरक्षित बनाने के लिए किये जा रहे हैं। ताकि हिन्दमहासगर में कोई और शक्ति न आ पाए।

सांस्कृतिक और जन-जन संबंध (people to people relation)
भारत और मालदीव के बीच सांस्कृतिक संबंध भी गहरा है:
मालदीव में भारतीय टीवी शो और बॉलीवुड फिल्में काफी लोकप्रिय हैं।
हर साल हज़ारों मालदीव के छात्र और मरीज़ भारत आते हैं शिक्षा और चिकित्सा उपचार के लिए।
भारत मालदीव के छात्रों को छात्रवृत्ति भी देता है।
ये सब प्रयास दोनों देशों के लोगों के बीच भरोसा और संपर्क बनाए रखते हैं।
वर्तमान घटनाक्रम (2023–2025)
2023 के चुनावों के बाद मालदीव में राजनीतिक माहौल थोड़ा बदल गया। “इंडिया आउट” अभियान जैसे कुछ राष्ट्रवादी आंदोलन आए, लेकिन दोनों देशों ने कूटनीति के ज़रिए स्थिति को संभाला।
2024-25 में दोनों देशों ने मिलकर कुछ बड़ी परियोजनाएँ शुरू कीं:
GMCP निर्माण का अगला चरण
रक्षा सहयोग समझौते का नवीनीकरण
जलवायु कार्रवाई और नीली अर्थव्यवस्था परियोजनाएँ शुरू की
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह मालदीव की संप्रभुता का पूरा सम्मान करता है।
संबंधों में चुनौतियां
भारत-मालदीव संबंधों पर असर डालने वाली कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
घरेलू राजनीति: मालदीव में राजनीतिक दल कभी-कभी भारत के प्रभाव पर सवाल उठाते हैं।
चीन का बढ़ता प्रभाव: मालदीव ने पिछले कुछ सालों में चीन के साथ कई समझौते भी किए हैं, जो भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय हो सकता है।
सार्वजनिक धारणा: कभी-कभी स्थानीय आबादी भारत की सैन्य उपस्थिति को अतिक्रमण के रूप में देखती है।
लेकिन इन सभी चुनौतियों के बावजूद, दोनों देशों ने अपनी रणनीतिक बातचीत को खुला रखा है।
भविष्य के अवसर
आने वाले समय में भारत और मालदीव के बीच संबंध और मजबूत हो सकते हैं, बशर्ते दोनों देश इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें:
जलवायु परिवर्तन सहयोग: समुद्र का बढ़ता स्तर मालदीव के लिए खतरा है, और भारत इसके लिए प्रौद्योगिकी और धन उपलब्ध करा सकता है।
डिजिटल कनेक्टिविटी और फिनटेक सहयोग
पर्यटन और शैक्षिक आदान-प्रदान
संयुक्त समुद्री अनुसंधान और महासागर शासन
भारत की “पड़ोसी पहले” और “सागर” नीतियों के माध्यम से मालदीव हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता बना रहेगा।

निष्कर्ष
भारत-मालदीव संबंध एक रणनीतिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक बंधन है जो सिर्फ़ सरकारी स्तर तक सीमित नहीं है – यह दोनों देशों के लोगों के बीच विश्वास और समझ का पुल भी बन गया है।
अगर दोनों देश आपसी सम्मान, सहयोग और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ मिलकर काम करें तो यह साझेदारी सिर्फ़ दक्षिण एशिया के लिए ही नहीं बल्कि पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक आदर्श बन सकती है।
यह ब्लॉग उन लोगों के लिए मददगार है जो दक्षिण एशिया की भू-राजनीति, क्षेत्रीय सुरक्षा और द्विपक्षीय संबंधों में रुचि रखते हैं।